महात्मा गांधी– नज़्म।
मैं हिंद की गरिमा हूं मुझमें हिन्द समाया,
पंजाब हो या सिंद मुझमें सब है समाया,
नारा हमेशा मेरा अहिंसा ही रहा है,
सीने में सदा मेरे तिरंगा ही रहा है।
तुम गोडसे की गोली की शैतानी आंधी हो,
मैं हिन्द के हर शख्स की धड़कन का गांधी हूं।।
कैसे मुझे मारोगे तुम ये बात बताओ?
क्या मार पाओगे सभी जज्बात बताओ?
हों गोलीं अगर इतनीं तो बेखौफ चलाओ,
हिंसा से अहिंसा को हराकर तो दिखाओ।
मैं साबरमती की लहरों में बेखौफ बहूंगा,
हिंसा का विरोधी था विरोधी ही रहूंगा।।
मैं हिन्द के हर शख्स की पहचान बना हूं,
दुनिया में मोहब्बत की ही आवाज बना हूं,
खुश हैं मुझे वो मारकर ये जानके खुश हूं,
मेरा मुल्क सलामत है मैं इस बात से खुश हूं।
मैं हिन्द के अरमान के पत्थर की शिला हूं,
सच्चाई की हर राह का मैं जलता दिया हूं।।
तुम गोडसे की गोली की शैतानी आंधी हो,
मैं हिन्द के हर शख्स की धड़कन का गांधी हूं।।
लेखक/कवि
अभिषेक सोनी “अभिमुख”
ललितपुर, (उत्तर–प्रदेश)