महाकाल हैं
काल के भी जो खुद काल हैं
देवाधिदेव महाकाल हैं
राम नाम तन भस्म रमाए
डम डम डम डम डमरू बजाए
औघड़ दानी हैं अविनाशी
जिनकी महिमा गाए काशी
करुणा के सागर दयाल हैं
देवाधिदेव महाकाल हैं
नन्दी की करते हैं सवारी
भाँग बहुत लगती है प्यारी
गौरा जिनके वाम विराजे
जटा जूट गंगा है साजे
धारण करते व्याघ्र खाल हैं
देवाधिदेव महाकाल हैं
गल में सोहे नाग विशाला
शम्भू पहनें मुण्डों की माला
व्याघ्रचर्म जिनका आसन है
तीनों लोकों पर शासन है
चाँद शोभित जिनके भाल हैं
देवाधिदेव महाकाल हैं
रौद्र रूप विकराल भयंकर
करुणा के अवतारी शंकर
हाथ में त्रिशूल है सोहे
अलौकिक छवि नाग मन मोहे
ताण्डव जो करें कमाल हैं
देवाधिदेव महाकाल हैं
कालकूट विष पीनें वाले
त्रिपुरा सुर वध करने वाले
कानों में बिच्छुन के कुण्डल
कर में धारण करें कमण्डल
रौद्र रूप लगते बवाल हैं
देवाधिदेव महाकाल हैं
कैलाश पर्वत के निवासी
भोले बाबा घट घट वासी
निरंकार ओमकार शिव हैं
समस्त सृष्टि आधार शिव हैं
अजर अमर अनंत त्रिकाल हैं
देवाधिदेव महाकाल हैं
महिमा अमित महान तुम्हारी
स्तुति करता जहान तुम्हारी
देव, असुर, नर तुमको ध्याते
मनवांछित फल तुमसे पाते
करते सबको जो निहाल हैं
देवाधिदेव महाकाल हैं
-स्वरचित मौलिक रचना-राम जी तिवारी “राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)