महर्षि बाल्मीकि
बाल्मीकि आदि कवि होई।सुर नर मुनि पूजे सब कोई।।
रामायण महाकाव्य रचाई।राम कथा सबहिं बतलाई।।
दिव्य चक्षु महर्षि पासा।बतलावें कछु लिखहिं विधाता।।
श्रीराम समकालीन शोभें।बताइ दीन्ह भविष्य का होवे।।
वनहिं आगमन प्रभुका होई।पूर्वहिं लिखदीन्ह सव जोई।।
सिय पुन लिख वनहिं विधाता।सन्तानहु सुख दीन्ह श्रीमाता।।
लव कुश दोउ तेजस्वी आये।सुर नर नृप बधाई गाये।।
ऋषिहिं छांह दोउ पावा।बने धुरंधर लखहिं सब ताता।।
समाजहिं सद्भाव सेवा जानो।महर्षि दीन्ह मन्त्र जो मानों।।
ऐसे महर्षि युग देव प्रनामा। अनुसरण करहुं जपहुं राम नामा।।
रचयिता- आशुतोष सिंह (अध्येता- दिल्ली विश्वविद्यालय)