महबूब के लिए अहसास…
मेरे महबूब के दीदार में, बहार बहुत हैं,
उसकी हर नजाकत में, चमत्कार बहुत हैं ।
उसके जज़्बात हैं भले, अनकहे से, पर,
उसकी झुकी पलकों में, समाचार बहुत हैं ।
उसके मौन की भाषा में, लफ्ज़ अनगिनत,
उसकी खामोशी में छुपे, इकरार बहुत हैं ।
उसके ख्वाबों-ख्यालों में, तीरगी-ए-शब नहीं,
उसकी यादों से ये रातें, गुलज़ार बहुत हैं ।
उसके सजदे में आ के, सुने प्रेम तराने,
उसकी हल्की मुस्कान में, मल्हार बहुत हैं ।
उसके दिल की जमीं पे, आशियां बनाया,
उसकी गलियों में चाहे, पहरेदार बहुत हैं ।
उसके पहलू में रहके, खास होके जाना,
उसकी सोहबत वास्ते, लाचार बहुत हैं ।
उसके पूरे मौहल्ले में, अलग है रंगत, तो,
उसकी गली में रहते, किराएदार बहुत हैं ।
उसके नाजों-नखरों में, ना झूठापन कहीं,
उसकी शोखियों के चर्चे, सरे बाजार बहुत हैं ।
उसके ज़माने से, हस्तियाँ कम हो गई,
उसकी मौजूदगी के, इश्तहार बहुत हैं ।
उसके इश्क समन्दर में, मोती पाए “खोखर”,
उसकी सीपी में प्यार के, भण्डार बहुत हैं ।
(नजाकत = नाज़ुक होने का भाव; सुकमारता, स्वभावगत कोमलता; मृदुलता, नाज़ुकमिज़ाजी , सूक्ष्मता; बारीकी)
(मल्हार = बारिश, वर्षा, सुनने में आता है कि तानसेन के “मियां के मल्हार” गाने से सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भी बारिश हो जाती थी ।)
(सजदा = सिर झुकाना, प्रणाम करना)
(गुलज़ार = आबाद, खिला हुआ, प्रफुल्ल, फूलों का बगीचा)
(पहलू = बगल, पार्श्व, बल, करवट, नज़रिया, दृष्टिकोण)
(सोहबत =संगति, साथ, संग, समागम)
(तीरगी = अंधेरा, अंधकार, स्याह)
(शब = रात, रात्रि, निशा)
(तीरगी-ए-शब = रात का अंधकार)
(शोखी = चंचलता, नाज़-नखरा, रूप का अभिमान)
(इश्तहार = घोषणा: एलान, विज्ञापन, सार्वजनिक सूचना)
©✍?24/01/2021
अनिल कुमार (खोखर)
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