महबूबा खूबसूरत
सांवली सलोनी मन मोहिनी सी मूरत
चाँद से भी सुन्दर है महबूबा खूबसूरत
चुपके चुपके चोरी चोरी निहारती होगी
मन मन्दिर के अंदर उपासती भी होगी
मन मे क्या है बताने की न हीं जरुरत
चाँद से भी ……………………………….
गरम बाहों में मुझे पलोसती भी होगी
नरम जांघों पर मुझे सुलाती भी होगी
महकते फूलों सी मुलायम है सूरत
चाँद से भी …………………………….
सावन के झूलों में झूले झुलाती होगी
निज सांसों में मुझे समाती भी होगी
परिंदों सी भोली है वो चंदा की मूर्त
चाँद से भी ………………………………
कदमों की आहट से पहचानती होगी
नींदों में भी उठकर पुकारती तो होगी
हुस्न की मल्लिका है परियों सी सूरत
चाँद से भी…………………………..
नाम मेरा वो लिखती मिटाती भी होगी
तस्वीर मेरी ही दिल में बसाती भी होगी
सुख की आराधना करती होगी वो सूरत
चाँद से भी………………………………
सांवली सलोनी मन मोहिनी सी मूरत
चाँद से भी सुन्दर है महबूबा खूबसूरत
सुखविंद्र सिंह मनसीरत