महबूबा और फौजी।
उसने मुझे समझा नही।
मैं उसे समझा न सका।
उसने नाता जोड़ लिया किसी गैर से।
पर मुझे मोहब्बत थी अपने भारत माता के छोर से।
उसने आंखो में काजल लगाकर श्रृंगार किया।
हमने अपने सिर पर कफ़न बांध कर खुद को न्योछावर किया।
उसके मांगो में किसी गैर ने सिंदूर भरा।
मेरे सीने पर राष्ट्रपति ने मेडल धरा।
कुछ वर्षो बाद उसके दो बच्चे हुए।
और मैं मातृभूमि की मिट्टी में तपते रहे।
वो इक दिन मिली हमसे एक बस में।
उसकी नजरें हमे देखती रही।
बिंधे थे मेरे लफ्ज़ हम उससे क्या कहे।
मैने देखा उसकी आंखो से आंसू कोहिनूर बहे।
आज भी रोती है वो मुझे याद करके।
मैं तो अमर हो गया अपनी भारत से प्यार करके।
शहीद हो जाऊंगा जिस दिन मैं सरहद पर।
तुम चली जाना मेरे हाथो में अपना खत देकर।
RJ Anand Prajapati