महफिल में रंग आया है
महफिल में रंग आया है
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महफिल में रंग आया है,
मन फूला ना समाया है।
माथे पर है लटें तेरी,
जुल्फों का घोर साया है।
खिलता है रोम रूहों का,
मोहब्बत ने नचाया है।
राहों में हम खड़े कब से,
आखिर वो शवाब आया है
कातिल सी नजर का फल,
आँखों में प्यार छाया है।
निकला है चाँद दिन में ही,
तारों का तल बिछाया है।
उनके पथ में झुका है सिर,
रग रग में रस बहाया है।
मनसीरत मन हुआ पगला,
बेहोशी में सुलाया है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)