*महफिल में तन्हाई*
मेरे ग़म पर आज वो हंस रहे हैं
भरी महफ़िल में ये क्या कर रहे हैं
मैं तो बयां कर रहा था अपना हाले दिल
क्यों वो इसे भी गज़ल समझ रहे हैं
अभी तो बस याद किया था उसको
दीवाने तो अभी से आहें भर रहे हैं
की बयां जब ख़ूबसूरती मैंने उसकी
कोई हैरानी नहीं जो उनके दिल मचल रहे हैं
है नहीं ये कोई कहानी यारों
हम तो अपना दर्द बयां कर रहे हैं
सुनकर दर्द भरा अफ़साना मेरा
महफ़िल में जाने क्यों ठहाके लग रहे हैं
मेरे आंसू भी उन्हें नहीं दिखते
महफ़िल में भी हम तन्हा लग रहे हैं
सोचा नहीं था पसंद करते थे जो हमें
आज उन्हें भी हम सिरफिरे लग रहे हैं
है ये कैसा समां महफिल में
उसकी बेवफाई भी लोग पसंद कर रहे है
जाने क्यों वो मेरे इश्क को इश्क नहीं
एक हसीना की मेहरबानी समझ रहे हैं।