महगाई गीत
महगाई गीत
हाय कितनी देख महगाई बढ़ रही
चार पैसे जेब में लेकर चला मैं
सोच कर सामान कुछ लेने चला मैं
मिल न पाया खास सामान रुपये कम
वापस निराश घर को फौरन चला मैं
देख खाली हाथ अब बीवी खफ़ा है
आज कितनी तेज वो मुझसे लड़ रही
हाय कितनी देख महगाई बढ़ रही
आस से कुछ बाप ने मुझको पढ़ाया
था पिता के पास धन सारा गवांया
देख मैं बेरोजगार बना आज हूँ
काश बन पाता पिता का खास साया
अब कर रहा आज मजदूरी पराई
देश में बेरोजगारी है बढ़ रही
हाय कितनी देख महगाई बढ़ रही
इनकम नहीं आज ख़र्चे बढ़ रहे हैं
शौक के ही आज चर्चे चल रहे हैं
जेब में मेरे नहीं है एक पाई
रो रहे दिल में दिखावी हँस रहे है
देख तो जीना हुआ मुश्किल बड़ा अब
किस तरीक़े जिंदगी मेरी कट रही
हाय कितनी देख महगाई बढ़ रही
■अभिनव मिश्र