महखने के लिए नवप्रभात जरूरी हैं
महकने के लिए नवप्रभात जरूरी है
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आगे बढना है तो बदलाव जरूरी हैं
ठहराव से हो जाए निजात जरूरी है
रूका जाए गर पानी सदा सड़ जाए
ताजगी हेतु जल में बहाव जरूरी है
राहें बंद हो जाए,मंजिल कहाँ से पाएं
लक्ष्य लब्धि हेतु खुली राहें जरूरी है
भानु बिन कैसे दिन रात कहाँ से पाएं
दिन -रात के लिए सूर्य चाँद जरूरी है
अकेलेपन में अकेले तन्हा मर जाएंगे
जिन्दा रहने के लिए ये मेले जरूरी हैं
बंद दीवारें कमरों की कैदी हमें बनाएं
बंदिशों की जीवन में रिहाई जरूरी है
एकांत में तन्हाई घुन भान्ति खा जाए
जीवन जीने के लिए शहनाई जरूर है
सदा सूनेपन में रहना ही पागल बनाए
खुलेपन में बाहर आवाजाही जरूरी है
एकाकीपन में सारे जल्दी थक जाएंगे
जीवन यात्रा हैतु मेलमिलाप जरूरी है
गम के साये में तो आँसू बहते रहते हैं
खुशियाँ पाने हेतु यह बहारें जरूरी है
बंदिशों की बेड़ियां निराशा में लें जाएं
आजादी के लिए खुली सांस जरूरी है
सुखविंद्र घुटता घुटता घुट ही जाएगा
महकने के लिए नव प्रभात जरूरी है
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)