” महक ले रही जमुहाई ” !!
कलिकाओं ने रंगत बदली ,
ली बसंत ने अँगड़ाई !!
है बयार का रुख बदला सा ,
बदल गये हैं सुर सारे !
भेज रही महके संदेशे ,
जैसे पहुँचे हरकारे !!
सरगोशी कर छू जाये है ,
कर ली उसने भरपाई !!
धरणी ने आँचल फैलाया ,
रंग खिले , बूटे बूटे !
महक रहे हैं बाग बगीचे ,
हैं अनंग के शर छूटे !
कोना कोना हुआ सुवासित ,
महक ले रही जमुहाई !!
हाथों में अब हाथ थमे हैं ,
सात जनम के हैं वादे !
कहीं जागती कसक अनूठी ,
सूने से हैं जगराते !
कहीं सरकता , उड़ता आँचल ,
लगे बहारें शरमाई !!
गीत मधुर है , मधुर लबों पर ,
थिरकी गालों पर लाली !
रंग चढ़ा बासंती ऐसा ,
अँखियाँ मद से मतवाली !
यहाँ वहाँ है चमक कनक सी ,
धरा लगे है बल खाई !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर( मध्यप्रदेश )