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6 Feb 2022 · 1 min read

महक (मुक्तक)

महक (मुक्तक)
■■■■■■■■■
महक बनकर वह जीवन में गुलाबों की तरह आए
खुशी से एक वह भरपूर ख्वाबों की तरह आए
न मकसद था कोई जीवन का ,वह जब तक नहीं आए
वह आए तो सवालों के जवाबों की तरह आए
■■■■■■■■■■■■■■■■■■
रचयिता: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451

Language: Hindi
160 Views
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