* महकाते रहे *
* गीतिका *
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फूल खिलते और मुरझाते रहे।
हर दिशा हर छोर महकाते रहे।
गम नहीं छोटी बहुत है जिन्दगी।
खिलखिलाते और मुस्काते रहे।
प्रिय मिले साथी हमेशा शूल ही।
मौन गहरे जख्म भी खाते रहे।
हर तरफ मँडरा रही हैं तितलियां।
रंग सब सुन्दर बहुत भाते रहे।
अल्प है चाहे समय सौंदर्य का।
सत्य का आभास करवाते रहे।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १९/१०/२०२२
मण्डी (हिमाचल प्रदेश)