*महकती फूल हूँ *
महकती फूल हूँ
मसले जाने
या फिर
मुरझाने का
कोई गम नहीं है
हवा में तिरती सौरभ हूँ
अपना अस्तित्व
पहचान खुद हूँ
झोंका पवन का
बिखरा सकता नहीं
थार में भी खेलती हूँ
पत्थर पे मुस्कान बिखेरती
कुटज हूँ मैं
पवन हिलोरे लेते
संग-संग मेरे
जीवन संजीवनी हूँ
प्रेम राग छेड़ती
मधुवन में
धूम मचाती हूँ
वन में मृदुल
वसंत बन आती हूँ
तेरा वजूद है मुझसे
तेरी पहचान हूँ मैं
पग की धूल नहीं
नहीं बिछती बन शूल
पद चिन्ह बनाती
पथ प्रदर्शक हूँ
चढ़ती माथे नहीं किसी की
न बनती सिरमौरय
धूल में फूल खिलाती
मैं तेरी भाल हूँ
पहचान मुझे नहीं
झाँक अपने आप को
अस्तित्व विहीन नहीं
तेरी अस्मिता की
नव -निर्मात्री हूँ ।