— महंगाई का दौर निराला —
महंगाई के इस दौर में
रिश्ते कौन निभाता है
जब तक न मिले मुनाफ़ा
कौन किस के यहाँ आता है !!
बेशक, बेशक हो शादी
आपकी बेटी की
बामुश्किल से कोई
साथ निभाता है !!
क्या मिले उस के यहाँ
यह सोच सोच रूक जाता है
आये कुछ माल जेब में अगर
तो बिना रुके चला आता है !!
कुछ महंगाई , कुछ दिल के
जख्म कुरेद ले आता है
करना तो अकेले बाप को है
किसी के देने से क्या हो जाता है !!
महंगाई तो सब के लिए
बराबर है मेरे दोस्तों
जिसे निभाना होता है , वो
कोसो मील से भी आ जाता है !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ