मसरूफ़
मसरूफ इस कदर है वो
वक़्त खैरियत का भी नहीं
ये दिल्लगी अच्छी भी है और
नागवार भी।।
चंद रोज़ हैं ज़िन्दगी के
क्या उन्हें पता नहीं
अनजान बनना ठीक है और
खुशगवार भी।।
-शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच, उ०प्र० )
मसरूफ इस कदर है वो
वक़्त खैरियत का भी नहीं
ये दिल्लगी अच्छी भी है और
नागवार भी।।
चंद रोज़ हैं ज़िन्दगी के
क्या उन्हें पता नहीं
अनजान बनना ठीक है और
खुशगवार भी।।
-शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच, उ०प्र० )