मशाल
एक मशाल तो जलाओ यारों,
सदियों से यहां अंधेरा है।
ऐसा लगता है जैसे अमावस्या की,
काली रात का ही डेरा है।
एक मशाल तो जलाओ . . . . . .
काल्पनिक किस्से और अंधविश्वासों ने,
मानसिक गुलामी को जन्म दे दिया है।
डरे सहमें से लोग पाखंडियों के ढोंग को,
सत्य मान पाखंड में ही जीवन जिया हैं।
पाखंड की मकड़जाल, काट कर तो देख,
सत्य की उजाला में
एक नई सुबह का ही बसेरा है।
एक मशाल तो जलाओ . . . . . .
सागर के बीच भंवर में, जैसे फंसे हुए हो
दलदल में जितना छटपटाओगे,
उतना ही ज्यादा धंसे हुए हो।
सर से पांव तक अज्ञानता में डूबे हुए हो।
बेड़ियों को तो काट फेंको यारो,
इस रात के बाद ही सबेरा है
एक मशाल तो जलाओ . . . . . .
नेताम आर सी 🖋️