“मशाल जलती रहे”—देशभक्ति ग़ज़ल
हर दिल अजीज़ में इक़ इंकलाबी विसाल चलती रहे
हों जाए दफ़न चाहें आवाज़ें, मग़र मशाल जलती रहे
ये मातृभूमि है रंग-बिरंगी, सभी क़ौमों ने सींचा है इसे
जो पहले हो चुका अब ना होगा, मिसाल फलती रहे
पाई पाई का हो हिसाब, वतनपरस्ती फ़कत उसी में है
हो जाए कौमें एक, ज्वालामुखी सी लाल पिघलती रहे
बहुत हो चुका हंगामा देखों जाति-मज़हब के नाम पर
हमें मुल्क़ है प्यारा, हर भारती में यही ताल पलती रहे
हर दरिया में हो पानी अब, कोई सूखा ना रहे बिन पानी
हो जाए हरे सब सूखें दरख़्त,नई नई डाल निकलती रहें
आवाम का वज़ूद हो आवाम के हाथों में बिन बन्दगी
आवाम ही सियासती सीनों पे दिन रात दाल दलती रहे
अब ना हों किसी की आंखें नम आज़ादी की तलब में
वतन आज़ाद है अब इतना, मन्जिलें विशाल ढलती रहे
____अजय “अग्यार