मलाल
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हम उनसे वफ़ा ऐसे निभाते चले गए।
सच होके भी सर अपना झुकाते चले गए।
महफ़िल में कई प्रश्न थे मेरे वजूद पर।
तो खुद को जान तेरा बताते चले गए।
लूडो में हरेक बार ही मुझको तो हरा दी।
क्यों आप खुद को उनसे हराते चले गए?
क्या बात चुभी दिल में ये अब तो न पूछिए
मुझको ही सितमगर वो बताते चले गए।
कहने को बचा क्या है जो उनसे मैं कह सकूं?
उल्फत में हम तो जां भी लुटाते चले गए।
तन्हाईयों के डर से ही बदहाल यूं हुआ
दुश्मन को भी सीने से लगाते चले गए।
नादां हूं बहुत इश्क़ में लुटकर पता चला
पत्थर को चमन दिल का चढ़ाते चले गए।
दीपक झा रुद्रा