मर्यादा
तुम्हें कुछ मर्यादा नाम की चीज़ सिखाई नही है तुम्हारे माँ – बाप ने ऐसे पति का नाम लेकर बुलाते हैं भला….नई नवेली बहु को तल्खी भरी आवाज़ में सुधा ने समझाया… मैं क्या कह कर पुकारूँ मम्मी दिव्यांश को पिछले पंद्रह सालों से तो इसी नाम से बुलाती हूँ अगर दोस्त पति बन जाये तो उसका नाम लेना अमर्यादित हो जाता है क्या ? मैं ये सब नही जानती बस तुम्हारा नाम लेकर पुकारना मुझे पसंद नही । ये ऊँची आवाज में क्या बोल रही हो ? कमरे में से पापा की आवाज़ आई…कुछ नही राजू बस नई बहु को मर्यादा सीखा रही हूँ , तभी मम्मी…मम्मी कर जिठानी भी आ गई पीछे – पीछे जेठ जी भी कविता…कविता करते आ गये…क्या है जानू आ रही हूँ मम्मी से कुछ पूछना है मुझे । नई नवेली बहु सास – जिठानी के अपने – अपने पतियों को नाम तो दूर अपनी तरफ से प्यार से दिये नाम को बुलाते सुन उनकी मर्यादा और अपनी अमर्यादा के फर्क को बड़ी गंभीरता से ढ़ूंढने में लगी थी ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 16/01/2020 )