मर्यादा तनिक तो निभाइये जनाब
छोड़िये मार काट की बातें करना
मजलूमों पर रहम खाइये जनाब
जहर फैल रहा सबकी आंखों में है
मर्यादा तनिक तो निभाइये जनाब
प्रेम की नदियां अब सूख रही हैं
द्वेश का सागर चहुंओर लहरा रहा है
सबकी आंखों में दिखती नफरत है
आदमी आदमी को काट खा रहा है
मनुष्यता विलुप्त हो रही धरा पर
प्रेम का परचम तो लहराइये जनाब
मर्यादा तनिक तो निभाइये जनाब।
घर कर रही निराशा हर दिल में है
हो रही हताशा अब हर मन में है
मक्कार झूठे लम्पट और व्यभिचारी
सर उठा चल रहे जन जन में हैं
पशुओं से भी बदतर समाज हो रहा
संवेदनाएं थोड़ी तो जगाइये जनाब
मर्यादा तनिक तो निभाइये जनाब।
घर बार उजड़ रहे लोगों के
बच्चे भूख से मर रहे लोगों के
दो जून की रोटी हासिल हो जाए
तुम्हारे झांसे में फंस रहे है लोग
अपनी रोजी-रोटी के चक्कर में
लोगों को तो न भडकाइए जनाब
मर्यादा तनिक तो निभाइये जनाब।