मर्दुम-बेज़ारी
बड़ी-बड़ी बातों का इल्म़ बांटना बहुत आसान है ,
उनका ‘अमल उतना ही मुश्किल ना आसान है ,
हक़ीक़त में इंसानी फ़ितरत आड़े आती है ,
जो बनते काम को बिगाड़े जाती है ,
हर कदम पर झूठ और फ़रेब से दो-चार होना पड़ता है ,
ज़लालत और खुदगर्ज़ी का सामना करना पड़ता है,
दौलत और रुसूख़ की वाहवाही होती है ,
अख़लाक और दानिश-मंदी हाथ मलते रह जाती है ,
रिश्ते भी कन्नी काट जाते हैं ,
दोस्त भी कुछ काम ना आते हैं ,
गर्दिश-ए- दौराँ में सब कुछ जज़्ब करना पड़ता है ,
ज़िंदा रहकर वक्त गुज़ारना पड़ता है।