मर्ज ए इश्क़ ( इश्क़ -ए हक़ीक़ी पर आधारित )
तुझसे इश्क़ की वजह मै क्या समझूँ ,
ना मिले तू तो खुद को अधूरा समझूँ।
तेरा दीदार करूँ या न भी कर सकूँ ,
इस बेचैनी को करार कैसे मै समझूँ ।
आखिर क्या रिश्ता है मेरा तुझसे ?
ना मै मीरा ना राधा,खुद क्या समझु ?
तेरा ही ज़िक्र और तेरी तारीफ़ें बस !
तेरे सिवा ना कुछ सुनूँ न ही समझूँ ।
यह इश्क़ मुझे लगता है आज़ार कोई ,
दर्द ,तड़प या दीवानगी इसे समझूँ ।
अब तू ही बता ए मेरे महबूब-ए-इलाही !
ये माजरा ए आज़ार को मै क्या समझूँ ?