मर्जी दीन दयाल की
प्रदत्त चरण- “मर्ज़ी दीन दयाल की”
विधा- दोहा
सुख-वैभव की चाह में, झुलस गया परिवेश।
मर्जी दीनदयाल की, भौतिकता या द्वेष?
चिंता का आधार है, लिप्सा का उत्थान।
मर्जी दीन दयाल की, व्यथित व्यर्थ इंसान।।
मर्जी दीन दयाल की, रचते वही विधान।
किसका जीवन छीनता, कालचक्र गतिमान।।
सत्य,धर्म की राह चल, हर तू जन की पीर।
मर्जी दीन दयाल की, मन क्यों आज अधीर?
मर्जी दीन दयाल की, कभी न मानो हार।
प्रस्तर का सेतु बना, सैन्य गई उस पार।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)