मरने का मन करता है!
समझ में आता नही मुझे, उसकी बेरुखी का कारण।
अब ये गलती है किसकी, यह अक्सर मुझे अखरता है।।
पहले खीज कर देखती थी, तो जान सूख जाती थी।
अब जो नही देखती मुझको, तो मरने का मन करता है।।
वो रहती भी है सम्भल कर, की कहीं मैं न जान जाऊं।
क्योंकि बदनामियों से उसका भी, दिल बहोत डरता है।।
कभी देख लेती थी मुझको, वो छुप छुपा कर सभी से।
अब जो नही देखती मुझको, तो मरने का मन करता है।।
खट्टे मीठे जज्बात अपनी, ख्वाबों की मुलाकात अपनी।
नित नए वादियों में चिद्रूप, संग उसके उड़ान भरता है।।
सपने नही बनती हक़ीक़त, फिर भी वही बांध रखी मुझे।
अब जो नही देखु मैं सपने, तो मरने का मन करता है।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ११/१२/२०२०)