मरती धरती
वैज्ञानिकों के बार बार चेतावनी देने के पश्चात् भी पर्यावरण में सुधार होने की बजाय हानि ही हो रही है ,जिससे धरती पर जीवन को ख़तरा हो गया है।पानी ,जंगल सब धीरे धीरे समाप्त हो रहे हैं।इसी को ध्यान में रख रची एक कविता:-
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“मरती धरती”
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जब तक हम
फ़ैसला करेंगे
कौन होगा अधिपति?
नदियाँ सूख जायेंगीं
पहाड़ दरक जायेंगें
सड़कों तक सरक जांयेंगे
पेड़ों के ठूँठ
निकल आयेंगें
सूखे पते जीभ निकाल
जंगलों का मूँह चिढ़ायेंगें।
यूँ ही घूमेगी धरती
सुस्त होते सूरज के
चारों और भागेगी
हाँफते हाँफते थकेगी
साँस भी कहाँ ले पायेगी?
कैसे जान बचायेगी धरती?
राजा लोग ठहरायेंगे
जनता को क़सूरवार
धर्म के ठेकेदार
किसको आवाज़ दें
किसको उचारें
सब अब भी चुप हैं
तब भी चुप रहेंगे
छाँटो सब अपना “वाद”
ढूँढो कोई केन्स कोई मार्क्स
मरी हुई धरती
जीवित कोई अपवाद
धनी तो ढूँढ लेंगें
लाखों प्रकाश वर्ष दूर ग्रह
करेंगें नये युग प्रारंभ वहाँ
फूटेगा नवांकुर फिर
यहीं धरती पर
शुरु होगा सतयुग
रचे जायेंगे नये देवता
मरी हुई धरती
जीवंत होगी फिर
चक्र यूँ ही चलता रहेगा
धरती मरेगी जीयेगी
बार बार हर बार
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राजेश”ललित”शर्मा