मय्यत पर मेरी।
मय्यत पर मेरी सब ही फूट-फूट कर रोए है।
उठाने से भी ना उठेंगे इस कदर हम सोए है।।1।।
सब गुफ्तगू कर रहे है बस मेरे अच्छेपन की।
सबने ही अपने चेहरे बहते अश्कों से धोए है।।2।।
नहला धुलाके सब हमको दूल्हा बना रहे है।
हम नींद में और सब हमारे वजूद में खोए हैं।।3।।
जिंदगी जीने की ना जुस्तजू बची है दिल में।
इस जिंदगी में खुशी कम गम ज्यादा होते हैं।।4।।
भीड़ में भी हम बड़े तन्हा तन्हा से हो गए हैं।
किए हर अकीदे पे हमको मिले बस धोखे है।।5।।
खुदाने हर दिल के लिए इक दिल बनाया है।
आसमानों पर दूर कही बनते सबके जोड़े है।।6।।
हर मखलूक पर बेवफाई का चढ़ा सुरूर है।
साखे सजर तन्हा हुई उड़गए जो सब तोते है।।7।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ