मयनोशी
——मयनोशी———
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मद्यप- मय को नहीं पीता
मय मद्यप ही पी जाती है
धीरे -धीरे मयनोशी लत
ये जिंदगी निगल जाती है
बुरा होता है सुरा का नशा
बिगड़ जाती है काया दशा
होशो-हवास में ना रहने दे
सुध-बुध बेसुध हो जाती है
खोया खोया रहे ये तनबदन
कामधंधे में नहीं लगता मन
मयकशी का अजब ये नशा
होशमंद, मदहोश बनाती है
मयकश नशे में सदा है रहता
किसी से कोई नहीं रहे नाता
हरेक रिश्ता बुरा है बन जाता
हाला तन-मन हिला जाती है
मयख़्वारी में खो जाए संपति
सभी को मदिरा से है आपत्ति
जैसे दीमक खा जाए लकड़ी
मदिरा तन-बदन खा जाती है
शराबी मयकशी में रहता मग्न
घर में रहता नहीं है चैन अमन
सुखविंद्र बर्बादी का है ये मंजर
घर की खुशी छीन ले जाती है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (केथल)