** मयकशी **
डा ० अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
**मयकशी**
दर्द देकर दवा देने आया
जख्म देकर मरहम लगाने आया
सिसकते अरमानों को भड़का गया
कोई फिर से मुझे रूला गया ।।
बाद मुद्द्त के तशरीफ़ लाया
तिस पे बीसों उलहाने लाया
मुझको तो कुछ भी कहने न दिया
अपनी कहानी सुनाने आया
कोई फिर से मुझे रूला गया ।।
मय मय्यस्सर न थी न हुई
खाली रिन्दों को देख
बिखरा आँगन में
मयकशी का इल्जाम लगाने आया
मुझको तो कुछ कहने न दिया
अपनी कहानी सुनाने आया
कोई फिर से मुझे रूला गया ।।
बाद जाने के उसके मैं खूब रोया
एक तकिया था सूखा जो घर में
अश्कों से भिगोने आया
मुझको तो कुछ कहने न दिया
अपनी कहानी सुनाने आया
कोई फिर से मुझे रूला गया ।।
अब न करूँगा इश्क तौबा कर ली
अब न करूँगा इश्क तौबा कर ली
मैंने इश्कबाजी से अपनी दूरी कर ली
लैला आये शीरी आये या के कोई हीर ही आये
मैंने ख़ुदा की चौखट पे नाक भी रगड़ ली
मुझको तो कुछ कहने न दिया
अपनी कहानी सुनाने आया
कोई फिर से मुझे रूला गया ।।