मम्मी डैडी के चरणों में चारों धाम
सुनों जीवन में याद रखना मेरा ये पैगाम
मम्मी डैडी के चरणों में ही है चारों धाम
खुशियां पल पल बढ़ती जायेंगी तुम्हारी
जब जाओगे कही करके उनको प्रणाम
पैमाइश नहीं कोई माँ बाप के प्यार की
इनकी तो ममता से भरा छलकता जाम
उम्र भर तड़पते वो जिनके माँ बाप नहीं
जिनके माँ बाप नहीं उनके तो है श्री राम
पैसो की खातिर मत तोड़ना दिल उनका
अच्छा नहीं मिलता इस बात का परिणाम
बहु के कहने पर मत निकालो घर से उन्हें
मत खोना माँ बाप को बन जोरू के गुलाम
जिनका घर में माँ बाप है वो घर जन्नत सा
अशोक करता जिसने पैदा किया उन्हें सलाम
जुबाँ रूकती नहीं थी माँ माँ कहकर कभी
माँ बाप के चरणों में प्यारे अपने चारों धाम
जिनकी गोद में सर रखकर सोये थे कभी
किसी लम्हात करवा दो उनको भी विश्राम
जिनके कन्धे पर बैठ पूरी दुनियां घूमते थे
आज उनका बोझ उठाने का नहीं इंतजाम
पूजा व्रत मिन्नतों से पाया जिन्होंने हमको
ऐसे माँ बाप के लिए मेरा जीवन भी नीलाम
अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से