ममता का सहारा
अथाह संशय थी मन में,
गृह त्याग का चिंतन उमड़ा,
मांँ की ममता बहती रहती,
आँखों में अश्रुधारा बन के ।
कलेजे का टुकड़ा बिखर न जाये,
हृदय के समीप जो पला बढ़ा,
अनंत दूरी-सी प्रतीत होती,
कैसे विरह अब सह पाऊँ ।
सुख वैभव नहीं माँगती अब ,
कहती चीखकर कर व्याकुल मांँ,
आंँचल से तनिक दूर न हुआ ,
देश छोड़ कैसे रह पाऊंँ अब ।
सिसक-सिसक के मन की पीड़ा ,
सुनता नहीं है यह जग सारा ,
रोक ले कोई मेरे जिगर को ,
हृदय में न है अब उजियारा ।
अचेत हुई अब पुत्र वियोग में ,
संसार लगता नहीं अब प्यारा ,
इधर-उधर अब पूँछती रहती ,
कौन करेगा प्रभु मेरा सहारा ।
#? बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर !