” ममता का कोई मोल नहीं है ” !!
शिशु जितने हिस्से में आये ,
मां ने सीने से चिपकाये !
नेह सदा वारा है उन पर ,
भूखा कोइ रह ना जाये !
अँखियाँ ही सब कुछ कह जाती ,
ममता में कोई झोल नहीं है !!
सदा चाह सन्तति की भाती ,
नियति उसमें हाथ बटाती !
जो हिस्से में आना आये ,
ममता उसे गोद दुलराती !
आतप सहकर सींचें , पालें ,
फिर भी बजते ढोल कहीं हैं !!
कोख कोख संस्कार मिले हैं ,
साँचे साँचे सभी ढले हैं !
जन्मघुट्टी के बडे असर हैं ,
सदा कमल बस कीच खिले हैं !!
जगत एक मंडी से कम ना ,
ममता का कोई तोल नहीं है !!
मां का दूध , थपकियाँ मीठी ,
यों ही लगती रही अनूठी !
सुन सुन लोरी , गहरी नींदें ,
बचपन की यादें ना रूठी !
खूब सुधारस पिलाया मां ने ,
ममत्व जैसा घोल नहीं है !!
बृज व्यास