मन
व्यथित हो रहा हैं मन,
विश्रान्त नही हैं तन,
फैला कैसा यह भ्रम,
भूल रहे हैं सब ब्रह्म,
मुट्टी भर हैं यह काया,
पाल रहे अनंत माया,
छोड़ देता साया संग,
क्यों होते हैं इतने दंग,
शब्द शब्द का यह खेल,
रखो तुम सबसे मेल,
देख रहा सब निराकार,
हर जन में उसका आकार,
मन हो शांत, मन हो शांत,
।।।।जेपीएल।।।