मन
एक कहानी है दिल से निकलती हुई
कहानी का शोर भी है
ये किसकी बात है किसके ख्वाब है
किसने तोड़े है बिखेरे है
चुग चुग कर फिर किसने भरे हैं
नही है मुट्ठी मे दौलत
पैर भी कांटे चुभे है
निकलती है असुविधाओं से मेरी उम्मीदें
रोज टकरा कर हारती हैं रात नई उषा पे सुनहरे
बहुत भार लिए लिए जीवन
नाव पे रखा है पार उतरने
तीरती हुई मेरी सादी सी देह गठरी
तट की भूमि पर और कितना विराम लेगी
सूर्य तेजहीन हो डूब ही रहेगा
मुख कांति को तम सरकता सा ढकेगा
चंचल जल करोड़ों लहरों में से बह
छुट किसी क्रिया में विस्तृत सीमा तक जल भर लेगा
पूरे तन का भार इसी ब्रह्मांड में ठहर
देख रहा है सर्वस्व ढहता हुआ जबकि
किसे किसे बचाकर रखा हुआ है कीमती कितना इकट्ठा छाती में सिमटा हुआ
टूटे हुए टुकड़े कटे फटे नुकीले सब अगले दिन की गंभीरता में सहयोगी हो भाग लेंगे
थोड़ा मोड़ कर जीवन में से ऐठन निकालने
नशीली दवा मात्रा मे एक एक घूंट अन्दर खींचेंगे
बड़ी विचित्र स्तिथियां टस से मस न हो
अपने साथ बहस में चिपटाती जा किसी को भी चुप न रहने देगी । किन्तु,
भरी हुई गले तक बात बह आंसुओ से हल्की होगी
कितना कुछ बीत कर सब मेरा फिर भी नही
खींच खसोट ठूस भरने को
मन फिर भी बस में नहीं ✍️✍️✍️