मन
बरसते मेघ को देख
भीगने को करता है मन
उठती उमंगों में
बहक जाने को करता है मन
उठती मिट्टी की महक से
महक जाता है मन
यार की यादों में
प्यार से भर जाता है मन
मोर को नाचते देख
थिरक जाने को करता है मन
इंद्रधनुष के रंगों में
रंग जाता है मन
लिपट साजन से
खो जाने को करता है मन
छोड़ जिस्म को
रूह से मिल जाने को करता है मन
खनखन करती बूंदों से
खनक जाता है मन
बहते पानी को देख
बह जाने को करता है मन
हर गम को भुला
खुशी से भर जाता है मन
जिंदगी जीने को
फिर से कर जाता है मन
केशी गुप्ता
लेखिका समाज सेविका
द्वारका दिल्ली