मन
मन
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आंख खोल जब वो मुस्काया
प्रथम परिचय बंदिश का पाया
जैसे जैसे सम्भला जीवन
खुद को तन पिंजरे में पाया
देखा चारो ओर ही बंदिश
समय चक्र बलशाली था
भोर की पहली किरन से लेकर
रजनी को बंदिश ने पाला था
कुछ उखड़ी सांसों को देखा
पल न लगा समझने में
मौत है इसकी सीमा रेखा
जीवन है इसकी बंदिश में
पर एक अजूबा तन में रहता
उत्श्रंखल सा मन है वो
उड़ता तोड़के बंदिश सबकी
अफ़सोस कि तन से ही है वो
जीवन जब तक है झांकेगा
लांघके खिड़की की सीमायें
पल दो पल स्वछंद उड़ेगा
अनुबंधो की तोड़ शाखायें
प्यार का पर्याय मन है पर
तिमिर भी कोने में जीता
पी लेता कड़वे घूंटो को
उनको अश्रू से धो लेता।