मन सीख न पाया
कितने जख्म मिले है अब तक,
पर मन सहना सीख न पाया ।
चोट लगी जब भी अन्तस में,
झर-झर ये आंसू झर आया ।
रे मन पगले ! अब तो सीख
जीवन में अति कुटिल कुठार ।
जिनको है सर्वस्व समर्पण,
वो ही करते मन पर वार ।
कब तक रोयेगा तू ऐसे
नहीं किसी को है परवाह |
मूल्यवान न अश्रु तेरे हैं
सबको निज अर्थों की चाह ।
जो बिन मांगे अनमोल दिया
कोई मूल्य समझ न पायेगा ।
तू भूलेगा निज को यदि
ये जग तुझको बिसरायेगा ।