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21 Mar 2022 · 1 min read

मन शहर की रंगतों से हो गया है बोर

मन शहर की रंगतों से
हो गया है बोर।

स्नेह,शिष्टाचार, गायब
और बिगड़ा आचरण।
हो रहा दूषित यहाँ का
अत्यधिक वातावरण।

शांति की अनुभूति कैसी!
है चतुर्दिक शोर।

है परायापन यहाँ बस
एक अपनापन नही।
नफरतों में बट गए घर
नेह का आँगन नही।

जोड़ने पर भी न जुड़ती
है प्रणय की डोर।

तप रहीं पक्की सड़क सब
और नंगे पाँव है।
पर ठहरने को न मिलती
वो सुहानी छाँव है।

लौटना चाहें हृदय
पगडंडियों की ओर।

अभिनव मिश्र “अदम्य”

Language: Hindi
Tag: गीत
222 Views
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