मन ललक रहा
मुक्तक
अश्क पूरित नैन हैं,दर्द ये क्यूँ छलक रहा।
हो कौन मेरे,रिश्ता क्या,मन क्यूँ तड़प रहा।
घेरे उदासियाँ तुझे क्यों इस तरह ,हक क्या,
जानने को आकुल यह मेरा मन पूछ रहा।
प्रश्न रहा अनुत्तरित क्यों,काश समझ पाती
पाने को उत्तर बेताव दिल ललक रहा।।
पाखी