*मन राह निहारे हारा*
कब आओगे, कब आओगे, कब आओगे साजन!
जब आँगन में मेघ निरंतर झर-झर बरस रहे हों,
ऐसे में दो विकल हृदय मिलने को तरस रहे हों,
जब जल-थल सब एक हुए हों, धरती-अम्बर एकम,
शोर मचाता पवन चले जब छेड़-छेड़ कर हर दम
ऐसे में तुम आना प्रियतम! ऐसे में तुम आना|
कंपित हो जब देह, नेह की आशा लेकर आना,
प्रेम-मेंह की एक नवल परिभाषा लेकर आना,
लहरों से अठखेली करता चाँद कभी देखा है!
या आतुर लहरों का उठता नाद कभी देखा है!
चंदा बन के आना प्रियतम! चंदा बन के आना|
पल-प्रतिपल आकुल-व्याकुल मन, राह निहारे हारा,
तुम आये, ना पत्र मिला, ना कोई पता तुम्हारा,
फागुन बीता, बीत गया आषाढ़ कि आया सावन,
कब आओगे, कब आओगे, कब आओगे साजन!
आकर तुम मत जाना साजन! आकर तुम मत जाना|