मन मेरा
जलती धरती मन मेरा,
हर पल अवसादों ने था घेरा,
तपन दुःख की बढ़ती थी जाती,
कोई ठौर न इसका
न कोई रैन बसेरा,
तलाश कर रहा था राहत डेरा,
अचानक चलने लगी मंद पवन,
आया कोई मस्ताना बादल,
तैयार था जो बरसने को,
आया बन कर शीतल फेरा,
इस प्यासी धरती को,
अपनी फुहारों से भिगोया और छेड़ा,
धरती हुई हरी सुख़याली,
उम्मीदों की नई कोपलें लगी फूटने
छमछम कर नाचने लगी,
तपती प्यासी धरती को था
ज़िंदगी ने घेरा,
जीवन था उस बादल का फेरा,
जीवन था उसका फेरा…