मन मेरा दर्पण
कान्हा ने सिखाया प्रेम हमें
मीरा ने सिखाई भक्ति है।
हनुमत सी बनी बलशाली मैं,
मुझमें दुर्गा की शक्ति है।
माँ सरस्वती की कृपा से,
मैं सुन्दर भजन सुनाती हूँ।
जो भी इस दिल में आता है,
बस लिखती हूँ और गाती हूँ।
संवेदनशील हृदय मेरा,
मन सुन्दर है, अति पावन है,
देती हूँ सदा सम्मान उन्हें,
जो निश्छल हैं, मनभावन हैं।
रखती हूँ सदा मैं ख्याल उनके,
जो मेरे प्रिय और करीबी हैं।
ईश्वर ने दिया सुन्दर जीवन
और यही मेरी खुशनसीबी है।
मेरे ईश्वर का सानिध्य ही है,
कलयुग की पड़ी परछाईं ना।
छल, कपट, दम्भ या द्वेष ही हो,
चंगुल में इसके आयी ना।
हो बुरी शक्ति या बुरे लोग,
लेती हूँ सदा पहचान उन्हें।
जो मन से निर्मल, निश्छल हैं,
मैं देती सदा सम्मान उन्हें।
हे ईश्वर कृपा करो इतना,
मानवता हो पहचान मेरी।
सच्ची सेवा और भक्ति को,
मैं समझूँ सदा है शान मेरी।
तेरी पूजा और तेरी सेवा में,
मेरा जीवन सदा ही अर्पण है।
मेरे ईश्वर तेरी कृपा से ही,
मेरा मन भी बना ये दर्पण है।
@स्वरचित व मौलिक
शालिनी राय ‘डिम्पल’🖊️