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2 Feb 2024 · 1 min read

” मन मेरा डोले कभी-कभी “

* देख परिंदों की आज़ादी
मन मेरा डोले कभी-कभी

काश कि,मैं आज़ाद हो पाऊं
मैं भी अपने घर को जाऊं
सैर करुँ मैं, शहर सभी
मन मेरा……………………

क़ैद ये बंदा कहां पे जाए
किससे अपनी व्यथा सुनाए
रह जाती है जुबां दबी
मन मेरा……………………

मन में यूं विश्वास बहुत था
उड़ने को आकाश बहुत था
काट दिये’पर’एक सभी
मन मेरा………………….

नींद न आए कैसे सोऊं
मन के कलुष कहां मैं धोऊं
रह जाती है परत जमी
मन मेरा…………………

बच्चे बाट जोहते होंगे
कष्ट असहनीय सहते होंगे
टूट न जाए आस लगी
मन मेरा…………………

मां की ममता रोती होगी
अश्रु-धार पग धोती होगी
टोक न दे कोई रुको अभी
मन मेरा…………………

•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता – मऊ (उ.प्र.)

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