मन मेरा गाँव गाँव न होना मुझे शहर
अल्हड़ मन मेरा चहके
सौंधी मिट्टी सा महके
जैसा चाहे ढल जाए
ज़िंदगी की चाक पर
मन मेरा गाँव गाँव
न होना मुझे शहर
उत्सव है मन का गाँव
थिरक थिरक नाचे पाँव
सूनापन समेटे शहर
रीता रीता हर पहर
मन मेरा गाँव गाँव
न होना मुझे शहर
कुएँ सा मीठा पानी मन
पीपल की बाहों में गगन
पसरी सुकूँ की छैयाँ तो
क्यूँ चुने चुभती दोपहर
मन मेरा गाँव गाँव
न होना मुझे शहर
पक्के मकाँ के कच्चे रिश्ते
इंसा बिकते कितने सस्ते
दरिया की मिठास को
पी गया खारा समंदर
मन मेरा गाँव गाँव
न होना मुझे शहर
पोखर पगडंडी हरे खेत
मन उड़े ज्यों उड़ती रेत
ईंटों के जंगल से निकल
उड़ चला कच्ची मुँडेर पर
मन मेरा गाँव गाँव
न होना मुझे शहर
रेखांकन।रेखा ड्रोलिया