*** ” मन मेरा क्यों उदास है….? ” ***
* हम सब पास-पास हैं ,
फिर क्यों…? मन मेरा इतना उदास है ।
चाँद और सूरज भी आस-पास है ,
जो अनंत किरणों के विन्यास हैं ।
सुरम्य शाम और मनोरम सवेरा है ,
फिर भी क्यों…? इतना अंधेरा है ।
हवाओं में मौज है , मस्ती है ;
और एक अद्भुत तरंग भरी उमंग है।
अनमोल प्रकृति की ,
अनुपम हरियाली भी मेरे संग है।
सुर है, साज है, सरगम भरी,
मधुर ,नई अंदाज है ;
सागर है , समंदर है , फिर क्यों..?
इतना प्यास है।
पल-पल हर पल ख़ास है,
हर क्षण कितना लाजवाब है ;
फिर भी, मन मेरा क्यों…?
इतना उदास है।
** माँ है…! , ममता वही ;
जनक है…! , जानकी वही ।
प्रकृति वही , संस्कृति वही ;
इंद्र-धनुश की सप्तरंग वही ,
राग में अंदाज वही।
फिर… मेरे मन में ,
क्यों…? उमंग नहीं।
हर एक मौसम में भी,
कितना खुश मिजाज़ है ;
फिर भी मन मेरा क्यों…?
इतना उदास है।
*** जो तथ्य में निहित है ,
वही सत्य के संग विहित है।
जो दृष्टि में है ,
वही प्रकृति की सृष्टि में है ।
हवाओं में भी ,
मौज की एक रवानी है ,
हर घटना की ,
एक अज़ब -गज़ब कहानी है।
फिर….मेरे मन में, क्यों…?
आस नहीं ;
जीवन जीने का , क्यों…?,
आज अंदाज नहीं।
अद्भुत रचनाओं से भरमार…
और आपार , यह संसार ;
जहाँ सब कुछ है, साकार ।
फिर…मेरे मन में भर पड़ा है, क्यों..?
इतना विकार।
प्रकृति में भी एक क्रम है ,
फिर मुझमें क्यों..? इतना भ्रम है ।
विधि है , विधाता है…! ;
निधि है , आपार समृद्धि भी है ;
फिर…क्यों…?
मेरे मन में इतनी विकृति है।
मेरा मन , मेरा तन ,
मेरी आत्मा , मेरे पास हैं ;
फिर क्यों …..?
मन मेरा इतना उदास है।
**** क्योंकि….!
” शायद मेरे मन में एक आत्म विश्वास नहीं । ”
” शायद कल्पना है , पर एक संकल्प नहीं । ”
” चित है , पर चिंतन नहीं । ”
” सोंच है , पर समझ नहीं । ”
” नवीनता है , पर नमन नहीं । ”
और
” शायद मेरे मन में , एक शुद्ध विचार नहीं। ”
” शायद मेरे मन में , एक शुद्ध विचार नहीं। ”
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बी पी पटेल
बिलासपुर ( छ. ग. )