मन में रह जाती है
सब अपने मन की बात करने लगे है
वो कहते हैं हम सुनते है पर….
अपने मन की बात मैं किससे कहूं
कौन है जो मुझे सुनना चाहता है , जब जब सोचा आज जरूर कह दूंगी अपनी बात तब तब कुछ ऐसा हुआ के ना मैं कह पाई और ना कोई सुन पाया
सब तो अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त है , सुबह से आंख खुलने से रात को आंख बंद होने तक बस खुद को अकेला ही पाती हूं
यूं तो सब बोलते है मुझसे पर बस अपनी जरूरत भर का
सास को उनकी जरूरत की फिक्र है , उनके हिसाब से समय से उठो , नहाओ और फिर कुछ और काम करो
उसके बाद पति और बच्चों की सुनो
किसी को नहाने के लिए तोलिया नही मिलता तो किसी को स्कूल की जुराबें
सबकी करते करते समय पर नाश्ता ना बना तो सुनो
समय आगे बढ़ता है और घर के सदस्य अपने अपने ठिकानों पर
पति अपने काम पर , बच्चे स्कूल और सास अपनी पूजा पाठ में
दिन भर घड़ी की सुइयों की तरह मैं बस भागती ही रहती हूं
साफ सफाई फिर कपड़े और फिर दुपहर का खाना
बच्चे आ जाएं तो फिर उनकी सेवा में
सुबह कब शाम और शाम से रात में तब्दील हो जाता है पता ही नही चलता
सब कहते है तुम्हे घर पर करना ही क्या होता है
सही भी तो है मैं आखिर करती भी क्या हूं सिवाए इसके के दिन भर उनकी छोटी छोटी जरूरतों को पूरा करने में लगी रहती हूं
कोशिश करती हूं के समय से हमेशा दो कदम आगे ही चलूं ताकि किसी का कोई काम कोई इच्छा अधूरी ना रहे
इन सब के बीच रह जाती है कुछ बाते जो मेरे मन की है
सास कभी मां बन कर पूछती ही नही के बेटा तुझे कोई तकलीफ तो नही
या कभी ये ही कह दे के तू थक गई होगी ला मैं तेरी मदद कर दूं
पति तो अपना ऑफिस भी घर ले आते है
और कभी समय हो तो अपने दोस्तो से मिलने चले जाते है
बच्चे अपनी पढ़ाई में , ट्यूशन में ही व्यस्त रहते हैं
कभी कभी सोचा के क्यों ना अपनी मां से ही बात करूं फिर सोचा क्या कहूंगी उनसे भी
बस सिवाए इसके के मैं अच्छी हूं
आखिर को मन की मन में ही रह जाती है और फिर एक दिन यूं ही शुरू हो कर खत्म हो जाता है