मन मुझको अवमुक्त करो अब
मन मुझको अवमुक्त करो अब
जाना है पीड़ा के पार ।
कुछ तो ऐसी जुगत लगाओ
खोल सकें खुशियां फिर द्वार ।
मेरे भीतर पलती पीड़ा
स्वजनों के सुख सोख रही ।
जाने कितने ही प्रश्नचिन्ह
व्यक्तित्व से मेरे जोड़ रही ।
मन के सब स्याह अंधेरे जो
छंट जायें पाकर नव प्रभास ।
आशाएं पल्लवित हो फिर से
जैसे बसन्त में अमलतास ।
शान्ति हृदय में स्थित हो
वाणी में मुखरित हो मिठास ।
इन उदास से नयनों को
फिर मिल जाये वही हास ।