मन मुकुर
सुंदर कर्म कीजिए,मन मुकुर करे साफ।
निज कमी को देखीए,न करें मन उदास।।
निज दृष्टि से देखिए,किस गहरे में आप।
खोजन चले दुष्टन को, दुष्ट बने खुद आप।।
तौं सुधारे चेहरा ,मन मलिन हो जात।
निज कर टांगी ले ,खूद मारे हैं आप ।।
कवि विजय की लेख में, हम खुद करें सुधार।
निज कर्म पहुंचायेगा,मोक्ष मुक्ति के द्वार।।
ज्ञान भक्ति वैराग्य ले,जाये हरि के पास।
काम क्रोध लोभ है अति,कर देवेंगे नाश।।
मौलिक रचना
डॉ विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग