मन भाता है (गीतिका)
मन भाता है (गीतिका)
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मन भाता है सबको फूलों का खिल जाना।
और बहकते सुन्दर यौवन का मुस्काना।
कलियों के घूंघट खुलने का आया अवसर।
सूरज का नभ से स्वर्णिम किरणें बिखराना।
ऊषा का प्राची का छोर सजाना मधुरिम।
पेड़ों पर चिड़ियों का मिलकर शोर मचाना।
अमराई की शोभा सावन में बढ़ जाती।
सखियों का झूलों पर बैठे मिलकर गाना।
वर्षा की रिमझिम बौछारों का प्रिय मौसम।
मतवाले काले बादल का नभ पर छाना।
देखो सबको प्रिय लगता है मनमानापन।
आंखों के जादू का सुखमय ताना-बाना।
सुन्दरता में बेसुध हो कर डूब गया जब।
मुश्किल हो जाता है मन पर काबू पाना।
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आधार छंद- वाचिक विद्युल्लेखा
मापनी- २२ २२ २२,२२ २२ २२
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)