मन ब्यथित है
मन ब्यथित है
तन ब्यथित है
आत्मा चिन्तन ब्यथित है।
शान्त हूं
एकांत हूं
और
बिबशता की कैद में हूं
नेह का भृम तोड़कर
बिस्वास को मृत
छोड़कर
मौन का उपवास लेकर
लड़खड़ाकर
चल रहा हूं
नेह पथ पर ठोकरें खा
रक्त रंजित पग हुए हैं।
हर प्रभा से
रात्रि तक
और हर निशा से
भोर तक
क्या गिनूं मैं
कितने सारे कल हुए हैं
मीत के हठयोग
एवं मौनता की शक्ति से
कितने युद्भा
मृत पड़ें हैं।